मंगलवार, 15 अगस्त 2023
बिटिया के लिए
सोमवार, 6 मार्च 2023
खिल जाती हैं दीवारें
किस काम का ये घर जो इसमें सज्जन मित्र न आएँ
खिल जाती हैं दीवारें जो आकर मित्र मुस्कुराएँ
कोई तो ठौर हो ऐसा कि धूप में भी छाँव हम पाएँ
लगा लें सीने से ऐसी दुनिया को ,जो कहीं आराम हम पाएँ
उग आते हैं चाँद सूरज तो इकट्ठे , हमारे मन तो जरा गुनगुनाएँ
नज़र उठती है यूँ तो अक्सर ,किसी आँख में वफ़ा का रँग तो पाएँ
ये दुनिया है अजब तिलिस्म , तेरी जादूगरी को हम भी कुछ आबाद कर जाएँ
आप आये हमारे घर , महका है समाँ ,समझ लो खुद ही , ये बेशक हम न कह पाएँ
सोमवार, 21 नवंबर 2022
चलना होगा
बहुत कुछ नहीं होगा तेरे मन का , फिर भी तुझे चलना होगा
ये लम्हों का सफ़र सदियों-सदियों का चलना होगा
तुम भूल गए हो के वो दोस्त नहीं है
लब पर आते हुए लफ़्ज़ों को संभलना होगा
तुमको वफ़ा करनी थी इसीलिए की
बेचैनियों के बिस्तर पर रात को ढलना होगा
ज़िन्दगी महज़ ख़्यालों के सिवा कुछ भी नहीं
रोज़ मरते-जीते खुद को ही छलना होगा
छाँव क़िस्मत में होगी तो मिलेगी
हवा का रुख़ मोड़ना परछाइयों से मिलना होगा
मंज़िल थी सामने ही फिर भी पहुँचे न हम कहीं
किसे पता था दिल से दिल तक का सफ़र , मीलों-मील का चलना होगा
शुक्रवार, 5 अगस्त 2022
ज़िन्दगी निभाने में
बूँद-बूँद रिस गये हम , उम्र के प्याले से
रीते रहे हम , ज़िन्दगी के निवाले से
तुरपनें , पैबंद, बखिए , सीवनें
सारी क़वायदें ज़िन्दगी निभाने में
आँखों के सामने पतझड़ जो उतरें
सीने के मौसम कैसे फिर निखरें
हमने तो अक्सर तिनके की छाँव में
खुद को सम्भाला , धूप के गाँव में
अपनी-अपनी धरती है , अपना-अपना अम्बर है
एक ख़ुदा बाहर तो एक पैग़म्बर अन्दर है
रविवार, 19 दिसंबर 2021
आज की कड़वी हकीकत
चाँद तक जा पहुँचे हो
पड़ोसी के घर तक पहुँच नहीं
कितनी डिग्रियाँ कर लीं हासिल
आम सी बात तो मालूम नहीं
कितने दोस्त हैं तुम्हारे F.B. पर
मगर एक भी जिगरी यार नहीं
बड़े से बँगले में हो तनहा
चार-जन का भी तो परिवार नहीं
कितने अंकों में है आय तुम्हारी
मगर मन को तो है कहीं करार नहीं
कितनी कीमती-कीमती घड़ियाँ हैं हासिल
मगर पल-दो-पल का वक़्त भी मयस्सर नहीं
बुद्धि से मात देते हो दिग्गजों को
मगर दिल से दिल तक पहुँचने की संवेदनाएँ ही नहीं
आज की कड़वी हकीकत है ये
कंक्रीट के जंगल में आदमी सा कोई किरदार नहीं
रविवार, 8 अगस्त 2021
इतनी सी ज़िन्दगी
मंगलवार, 25 मई 2021
बचपन की महक
सुनो वीना.... ऐ दोस्त ,तकरीबन साढ़े चार दशकों के बाद तुमसे मिलने का इन्तज़ार , आँखों में बसी उस उम्र की कमनीयता , दिल में बसा वही सौन्दर्य..... उस उम्र में जब मैं दूसरे शहर से स्कूल में नई-नई आई थी , तुम्हारा अपना ग्रुप था ..... तुम , सीता ,अमृत ,आशा गाबा ,निर्दोष , मधु ,कमल ,पुष्पा ,अनीता, सब। कितने अपनत्व से तुम सबने मुझे गले लगा लिया था। वैसा फिर कम ही हुआ। लोग दूसरे के बारे में एक राय कायम किये रहते हैं और एक नट-शैल के अन्दर रहते हैं।