लाख सीपियाँ मोती अन्दर 
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है 
नट है या फिर कोई बन्दर 
मत भोंको सीने में खन्जर
टूटे लम्हे , रूठा पिन्जर 
कितनी बातेँ बदल गईं हैं
कहाँ रुका है कोई मन्जर
कौन मुक्कद्दर का है सिकन्दर 
क्या तुमने देखा न कलन्दर  
बेगाना सा इस दुनिया से
लय लागी है किस से अन्दर 
अनुभूतिया 184/71
1 घंटे पहले
 
 

