बुधवार, 2 नवंबर 2011

छाया का गिला है

अपने जैसा कोई
नहीं मिला है

सुख की कोई
आधार शिला है

हर कोई तन्हा
बहुत हिला है

किस काँधे पर
आराम मिला है

चिन्गारी है
आग सिला है

धूप है हर सू
छाया का गिला है

दिल दहला और
मौसम खिला है

सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनों बाद आपकी रचना को बांचने का अवसर मिला .........वाह ! क्या बात है ..बहुत ही शानदार अनुभव रहा ..बधाई !

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  2. क्या बात हैं बहुत सुंदर .....

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  3. चिन्गारी है
    आग सिला है

    धूप है हर सू
    छाया का गिला है
    Kamaal kee panktiyan!

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  4. बहुत सुंदर रचना आपकी इस रचना को पढ़ कर एक गीत की चंद पंक्तियाँ याद आई
    हर घड़ी बादल रही है रूप ज़िंदगी
    छावन हैं कभी,कभी है धूप ज़िंदगी
    हर पल यहाँ जी भर जियो
    जो है यहाँ कल हो न हो .....
    .समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  5. सुन्दर। आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें।

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  6. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  7. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-687:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  8. सदियों से सुख-दुख
    का सिलसिला है
    बहुत सुंदर रचना...

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  9. यही जीवन है..
    कोई संतुष्ट नहीं
    सुन्दर रचना.

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  10. दिल दहला और
    मौसम खिला है

    सदियों से सुख-दुख
    का सिलसिला है

    बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ।

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं