अपने जैसा कोई
नहीं मिला है
सुख की कोई
आधार शिला है
हर कोई तन्हा
बहुत हिला है
किस काँधे पर
आराम मिला है
चिन्गारी है
आग सिला है
धूप है हर सू
छाया का गिला है
दिल दहला और
मौसम खिला है
सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है
बुधवार, 2 नवंबर 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत दिनों बाद आपकी रचना को बांचने का अवसर मिला .........वाह ! क्या बात है ..बहुत ही शानदार अनुभव रहा ..बधाई !
जवाब देंहटाएंक्या बात हैं बहुत सुंदर .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
Matrimonial Service
चिन्गारी है
जवाब देंहटाएंआग सिला है
धूप है हर सू
छाया का गिला है
Kamaal kee panktiyan!
बहुत सुंदर रचना आपकी इस रचना को पढ़ कर एक गीत की चंद पंक्तियाँ याद आई
जवाब देंहटाएंहर घड़ी बादल रही है रूप ज़िंदगी
छावन हैं कभी,कभी है धूप ज़िंदगी
हर पल यहाँ जी भर जियो
जो है यहाँ कल हो न हो .....
.समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
बेहतरीन शब्द संयोजन ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर। आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-687:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
क्या बात है, बढिया
जवाब देंहटाएंसदियों से सुख-दुख
जवाब देंहटाएंका सिलसिला है
बहुत सुंदर रचना...
यही जीवन है..
जवाब देंहटाएंकोई संतुष्ट नहीं
सुन्दर रचना.
बेहतरीन..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...बधाई
जवाब देंहटाएंदिल दहला और
जवाब देंहटाएंमौसम खिला है
सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है
बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ।
bahut sundar post...
जवाब देंहटाएं