बुधवार, 26 नवंबर 2025

ऐसी आबो-हवा

कोई हमें चाहता है ये ख़्याल कितना ख़ूबसूरत है 

इससे अपनी दुनिया आबाद कर लेना 


ये छाँव चलेगी तुम्हारे सँग-साथ 

इसे मुट्ठी में क़ैद कर लेना 


ये दुनिया किसी जन्नत से कम नहीं 

इसके सजदे में दिन-रात शादाब कर लेना 


जब भी मिलें नजरें लब पे मुस्कराहट हो 

रिश्तों में ऐसी आबो-हवा रख लेना 


धूप तो आनी-जानी शय है 

किसी काँधे पे रख के सर, थोड़ा आराम कर लेना 

बुधवार, 19 नवंबर 2025

नसीबा लिखने वाला

आँखें भी उसी की हैं , मंज़र भी उसी के हैं 

मरहम भी उसी के हैं , खँजर भी उसी के हैं 


मेरे बोने से है क्या उगता 

हरियाली भी उसी की है ,बंजर भी उसी के हैं 


अब छोड़ दिया उसी पर सब 

कठपुतली से नाचते हम , बंदर भी उसी के हैं 


नसीबा लिखने वाला है वही 

सिकंदर भी उसी के हैं , कलंदर भी उसी के हैं 

सोमवार, 11 अगस्त 2025

चंदा से की बातें

कभी चंदा से की बातें ,

सुहानी सी मुलाकातें 

उतरे फिर वही मौसम  

सीने में जगमगाते-जगमगाते 


घड़ी दो घड़ी बैठो 

के जी जाएँ मुट्ठी भर सौगातें-सौगातें 


सुलझ ही जाएगा रिश्ता 

जो मन है सुलझाते-सुलझाते 


मेरे इक नाम की तख्ती,

मेरी ख़ुशबू ,हिना मेरी

तेरे अँगना को महकाए 

तो जी जाते जी जाते 

शुक्रवार, 27 जून 2025

रंग ज़िन्दगी के

रंग ज़िन्दगी के ही बिखरते रहे 

हर हाल में जीने की क़सम खाये हैं 


सावन की झड़ी बरस कर चली भी गई 

चंद लम्हे ही हाथ आये हैं 


ख्वाबों के रंग तो बड़े चटकीले थे 

आँख में क्यों पशो-पेश के जंगल से उग आये हैं 


वक्त की धूप में तपे हैं 

मटमैले से हो आये हैं 


कुन्दन बनने की चाह तो थी 

भट्ठी से घबरा के उठ आये हैं 


पहला कदम ही तय करता है ढलान 

दिशा सही से ही मुकाम नजर आए हैं 


किसी को लगे कुन्दन से , किसी को पिछड़े हुए 

रखो तो पारखी नजर , वो किन जूतों में चल के आये हैं 

मंगलवार, 13 मई 2025

ज़िन्दगी बजानी है

बिगड़ा हुआ साज है और ज़िन्दगी बजानी है सँवरे या न सँवरे ये , कोई धुन तो बनानी है 


ज़िन्दगी तो यूँ अक्सर बहुत बोलती है 

रातों को जगाती है ,

बतियाती है के कोई बात तो बनानी है 


दिखता नहीं भले कुछ भी 

इक समन्दर है उम्र के काँधे पर ,

पार उतरने को कश्ती तो बनानी है 


जो तुमने मानी होती कोई बात , 

तो हम भी सयाने होते 

हालात के मारे हुए और ज़िन्दगी तो सजानी है