शुक्रवार, 27 जून 2025

रंग ज़िन्दगी के

रंग ज़िन्दगी के ही बिखरते रहे 

हर हाल में जीने की क़सम खाये हैं 


सावन की झड़ी बरस कर चली भी गई 

चंद लम्हे ही हाथ आये हैं 


ख्वाबों के रंग तो बड़े चटकीले थे 

आँख में क्यों पशो-पेश के जंगल से उग आये हैं 


वक्त की धूप में तपे हैं 

मटमैले से हो आये हैं 


कुन्दन बनने की चाह तो थी 

भट्ठी से घबरा के उठ आये हैं 


पहला कदम ही तय करता है ढलान 

दिशा सही से ही मुकाम नजर आए हैं 


किसी को लगे कुन्दन से , किसी को पिछड़े हुए 

रखो तो पारखी नजर , वो किन जूतों में चल के आये हैं 

मंगलवार, 13 मई 2025

ज़िन्दगी बजानी है

बिगड़ा हुआ साज है और ज़िन्दगी बजानी है सँवरे या न सँवरे ये , कोई धुन तो बनानी है 


ज़िन्दगी तो यूँ अक्सर बहुत बोलती है 

रातों को जगाती है ,

बतियाती है के कोई बात तो बनानी है 


दिखता नहीं भले कुछ भी 

इक समन्दर है उम्र के काँधे पर ,

पार उतरने को कश्ती तो बनानी है 


जो तुमने मानी होती कोई बात , 

तो हम भी सयाने होते 

हालात के मारे हुए और ज़िन्दगी तो सजानी है