शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

पकड़ा है कस के कल को

आसमान उसका छूटा हुआ है
दिल जिसका टूटा हुआ है

कहर बन कर बरपी है बिजली
अरमानों के दिये बुझ गये हैं

वो उड़ने चला था आसमां में
पँख उसके जख्मी पड़े हैं

ये हवाएँ जो दिखती हैं चुप सी
उसके सीने को नश्तर लगे हैं

उसने पकड़ा है कस के कल को
आज उसके हाथों से छूटा हुआ है

आसमां तो है बाहें फैलाये
परिन्दा अपनी उड़ानों से रूठा हुआ है

2 टिप्‍पणियां:

  1. आसमां तो है बाहें फैलाये
    परिन्दा अपनी उड़ानों से रूठा हुआ है .....अच्छी अभिव्यक्ति है,...

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  2. बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति ... अच्‍छी रचना।

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं