सोमवार, 25 मई 2009

उम्र के हाथों छला गया है

आज का दिन भी नया नहीं है
बचपन याद से गया नहीं है
अल्हड़ है ये अब भी बेशक
उम्र के हाथों छला गया है

मैंने चाहा गीत मैं गा लूँ
सूरज से इक किरण चुरा लूँ
माथे में इक सोच बसा लूँ
अंगने में सूरज जो खड़ा है

प्यार का उबटन , वफ़ा की खुशबू
क्यों न मैं मल-मल के नहा लूँ
मेरा चाँद-खिलौना भी तू
मेरे माथे ताज जड़ा है


6 टिप्‍पणियां:

  1. pyaar ka ubtan vafa ki khushboo.....
    wah wah wah wah
    BADHAI

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  2. वह शारदाजी किtतनी मसूमियत से ब्लोग को प्यार से सराबोर कर दिया बधाई

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  3. प्यार का उबटन , वफ़ा की खुशबू
    क्यों न मैं मल-मल के नहा लूँ
    मेरा चाँद-खिलौना भी तू
    मेरे माथे ताज जड़ा है ....pyaar bhari taajgi se bhar gaya mann

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं