शनिवार, 16 जनवरी 2010

रन्ज न रखना तुम दिल में

दुनिया को इधर उधर तुम कर लेना
पर रन्ज न रखना तुम दिल में , मेरे लिए
कह पाते नहीं जब ज़ज्बात दिल के
तुम नज़रों की भाषा पढ़ लेना

तोहफों की कीमत आँकों मत
जो खो जाएँ तो फिर न मिलें
कुछ ऐसे तोहफे बाँटो न
रन्ज न रखना तुम दिल में , मेरे लिए

मत आना किसी की बातों में
अपने ही दिल की खुराफातों में
इस दूरी को तुम पाटो न
रन्ज न रखना तुम दिल में , मेरे लिए

नज़रों को बचा कर चलना मत
नज़रों के सन्देशे पहुँचेंगे
रूठे को मनाना मुमकिन न
रन्ज न रखना तुम दिल में , मेरे लिए


8 टिप्‍पणियां:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

शारदा जी, आदाब
.......तुम नज़रों की भाषा पढ़ लेना
........मत आना किसी की बातों में
अपने ही दिल की खुराफातों में.....
......नज़रों को बचा कर चलना मत
नज़रों के सन्देशे पहुँचेंगे.....

सिर्फ
एक ही शब्द
बार बार.....
वाह.! वाह.!! वाह.!!!
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मत आना किसी की बातों में
अपने ही दिल की खुराफातों में
इस दूरी को तुम पाटो न
रन्ज न रखना तुम दिल में , मेरे लिए ..

बहुत ही खूब लिखा है ........ पर दूरी तो ख़त्म जल्दी होनी चाहिए ........

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

badhia rachna.

ज्योति सिंह ने कहा…

मत आना किसी की बातों में
अपने ही दिल की खुराफातों में
इस दूरी को तुम पाटो न
रन्ज न रखना तुम दिल में , मेरे लिए
bahut khoob .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नज़रों को बचा कर चलना मत
नज़रों के सन्देशे पहुँचेंगे
रूठे को मनाना मुमकिन न
रन्ज न रखना तुम दिल में , मेरे लिए...ू

बहुत सुन्दर!

रचना दीक्षित ने कहा…

कह पाते नहीं जब ज़ज्बात दिल के
तुम नज़रों की भाषा पढ़ लेना

सही कहा है जी

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत रचना
बहुत बहुत आभार

kshama ने कहा…

मत आना किसी की बातों में
अपने ही दिल की खुराफातों में
इस दूरी को तुम पाटो न
रन्ज न रखना तुम दिल में , मेरे लिए
Kaisi bhavuk iltija hai!