गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

धुआँ धुआँ हो करके उठा

दिल तपता है , किसने देखा अँगारों को
वो जो धुआँ धुआँ हो करके उठा , उसे उम्र लगी परवानों की

ढलती है शमा , पिघली जो है ये अश्कों में
छा जाती है अफसानों सी , इसे उम्र लगी बलिदानों की

रँग कोई हुआ , गुलाल हुआ या मलाल हुआ
मिल जाता है इन्सां के खूँ में , इसे उम्र लगी अरमानों की

लपटें जो उठीं , कुछ धुआँ हुआ कुछ रोशनी सा
इसे पँख लगे परवाजों के और उम्र लगी दिल-वालों की

11 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लपटें जो उठीं , कुछ धुआँ हुआ कुछ रोशनी सा
इसे पँख लगे परवाजों के और उम्र लगी दिल-वालों की

khoobsorat likha hai ..... Roshni kuch der tk jalne ke liye pawaaz oonchi honi chaahiye ...

अनिल कान्त ने कहा…

aapki rachana mujhe achchhi lagti hain.

Randhir Singh Suman ने कहा…

लपटें जो उठीं , कुछ धुआँ हुआ कुछ रोशनी सा
इसे पँख लगे परवाजों के और उम्र लगी दिल-वालों की nice

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

बहुत ही अच्छी रचना...!आभार...

निर्मला कपिला ने कहा…

रँग कोई हुआ , गुलाल हुआ या मलाल हुआ
मिल जाता है इन्सां के खूँ में , इसे उम्र लगी अरमानों की
बहुत सही कहा है सुन्दर रचना के लिये बधाई

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

bahut achchalikha hai.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

शारदा जी, आदाब
दिल तपता है , किसने देखा अँगारों को....
लपटें जो उठीं , कुछ धुआँ हुआ कुछ रोशनी सा.....
चंद लफ़्ज़ों में कितना कुछ कह दिया आपने.
सुंदर रचना, बधाई

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन रचना, वाह!

shama ने कहा…

ढलती है शमा , पिघली जो है ये अश्कों में
छा जाती है अफसानों सी , इसे उम्र लगी बलिदानों की
Bahut khoob!

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

लपटें जो उठीं , कुछ धुआँ हुआ कुछ रोशनी सा
इसे पँख लगे परवाजों के और उम्र लगी दिल-वालों की
bahuta hee sundar aura khoobasuurat panktiyan. vaise to aapkee pooree gajal hee behatareen hai.
Poonam

नीरज गोस्वामी ने कहा…

लपटें जो उठीं , कुछ धुआँ हुआ कुछ रोशनी सा
इसे पँख लगे परवाजों के और उम्र लगी दिल-वालों की

बहुत अच्छी रचना..वाह..शारदा जी बहुत ही अच्छा लिखा है आपने...
नीरज