सोमवार, 5 जुलाई 2010

सखी सी ही

वक़्त का चेहरा भी है पहचाना हुआ
जिन्दगी तू भी है सखी सी ही


छलकती हो चाहे जिन्दगी कितनी
नजर में है चाहत की कमी सी ही

गले लगाऊँ किसे और रूठूँ किस से
हर आँख दूसरी में है नमी सी ही

कल के हिस्से का हमें आज नहीं मिलना है
वक़्त के हाथ में है खुदाई सी ही

17 टिप्‍पणियां:

  1. गले लगाऊँ किसे और रूठूँ किस से
    हर आँख दूसरी में है नमी सी ही

    Anayaas yaad aa gayi ye panktiyan:

    Har rooh me ek gam chhupa lage hai mujhe,
    Zindagi too ek bad-dua-si lage hai mujhe".

    Aapki yah rachana zindagi ka nichod hai...bahut khoob!

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  2. छलकती हो चाहे जिन्दगी कितनी
    नजर में है चाहत की कमी सी ही

    गले लगाऊँ किसे और रूठूँ किस से
    हर आँख दूसरी में है नमी सी ही
    वाह हर शेर लाजवाब है। बधाई

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  3. बेहद लाजवाब प्रस्तुति ..कुछ कहने को नहीं रह जाता.

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  4. वाह्…………गज़ब का लिखा है……………बहुत सुन्दर्।

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  5. छलकती हो जिन्दगी चाहे नजर में चाहत की कमी सी है
    हर आँख दूसरी में नमी सी है ...
    वाह ....!

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  6. वक़्त का चेहरा भी है पहचाना हुआ
    जिन्दगी तू भी है सखी सी ही ..
    कितना अच्छा हो अगर इंसान अपने जीवन को ही सखी मान ले अपना ... अच्छे शेर हैं ...

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  7. वाणी गीत ने आपकी पोस्ट " सखी सी ही " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    छलकती हो जिन्दगी चाहे नजर में चाहत की कमी सी है
    हर आँख दूसरी में नमी सी है ...
    वाह ....!



    वाणी गीत द्वारा गीत-ग़ज़ल के लिए Tuesday, July 06, 2010 को पोस्ट किया गया
    ye tippniyan mail me to aaee par blog par post nahi ho paaeen

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  8. कल के हिस्से का हमें आज नहीं मिलना है
    वक़्त के हाथ में है खुदाई सी ही
    सच कहा । बहुत सुंदर ।

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  9. छलकती हो चाहे जिन्दगी कितनी
    नजर में है चाहत की कमी सी ही
    ...bahut sundar...marmshparshi racna..

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  10. क्या खूब लिखा है... खूब कहा है...

    कल के हिस्से का हमें आज नहीं मिलना है
    वक़्त के हाथ में है खुदाई सी ही

    kahne को baaki kuchh छोड़ा नहीं अब...

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं