छिड़ी जो बात , जख्म छेड़ गया कोई
यादों की हवाओं का रुख मोड़ गया कोई
वक्त ने अपना काम किया बखूबी तो मगर
गुजरे ज़माने की वही बात , सिरहाने छोड़ गया कोई
बिखर के सिमटे तो खुद से भी नजर चुराते ही रहे
बचे-खुचे को फिर पलट कर , उसी मुहाने छोड़ गया कोई
पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
हिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई
मन के पानी पर अक्स मिटते ही नहीं
मार के कंकड़ लहरों का , शोर सुनाने छोड़ गया कोई
मैं जानती हूँ कि ये निराशा है , मगर जब गम तरन्नुम में गाने लगे तो मायूसी कहाँ बची ? यानि गम स्वीकार करते ही हम सहज होने लगते हैं , और हलचल भी तो जीवन का ही लक्षण है ।
तब न थी हाथों में कलम
जब था जहाँ अपना भी गुलशन
इसी वीराने ने थमाई है कलम
जाने हम क्या क्या लिख दें
शान में तेरी ऐ जिन्दगी
तुम लौट के आओ तो सही ...
इमरान जी , इस ओर ध्यान दिलाने का और ग़ज़ल पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया , अब टिप्पणी वाला कॉलम काम करना शुरू हो गया है ..
जवाब देंहटाएंइमरान जी की टिप्पणी ...
शारदा जी,
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है इस बार आपने.....बहुत ही खूबसूरत....इस पोस्ट के लिए ढेरों शुभकामनायें|
आपकी इस बात से इत्तेफाक रखता हूँ....की गम को स्वीकार कर लेना बहुत बड़ी बात है और उसी से ही गम कम भी होता है|
आपके ब्लॉग पर टिप्पणी का लिंक काम नहीं कर रहा इसलिए मेल भेज रहा हूँ|
Regards
Imran Ansari
मैं भी बड़ी देर सेर से कोशिश कर रही थी पर अब एक प्रतिक्रिया के साथ टिप्पणी बॉक्स खुला है. बेहतरीन ग़ज़ल और सोच. सच ये ग़म और मुश्किलें ही हमें हर बार और मजबूत इंसान बनाते हैं.
जवाब देंहटाएंयहाँ तारीख भी गलत चल रही है
जवाब देंहटाएंग़ज़ल दिल को छू गई। बेहद पसंद आई। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआज की कविता का अभिव्यंजना कौशल
बेहतरीन ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंlaajwaab prastuti ,........bahut khoob
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (16/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
जवाब देंहटाएंहिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई
aur
तब न थी हाथों में कलम
जब था जहाँ अपना भी गुलशन
इसी वीराने ने थमाई है कलम
Gazab kee panktiyan hain!
इसी वीराने ने थमाई है कलम
जवाब देंहटाएंवाह!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
जवाब देंहटाएंहिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
बेहतरीन ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंसादर
वाह क्या बात कही आपने...
जवाब देंहटाएंसही है..कहा गया है आह से ही कविता निकलती है...आह न हो तो कविता बने कैसे...
सुन्दर भावपूर्ण रचना...
बहुत संवेदनशील रचना है आपकी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवक्त ने अपना किया काम बखूबी लेकिन
जवाब देंहटाएंसिरहाने गुजरे ज़माने जलाने छोड़ गया
पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
कटीली यादें चुभाने सताने छोड़ गया
वाह ! आपकी सोच की पहुंच !! बधाई !!!
एक अत्यंत सुन्दर ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंऔर साथ सुन्दर सन्देश..."गम स्वीकार करते ही हम सहज होने लगते हैं" सादर बधाई
आदरणीय शारदा जी,
जवाब देंहटाएं"पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
हिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई"
मन के भावों को आपने अच्छी अभिव्यक्ति दी है!
और इसका तो जवाब नहीं है -
"जाने हम क्या क्या लिख दें
शान में तेरी ऐ जिन्दगी
तुम लौट के आओ तो सही ... "
आभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
तब न थी हाथों में कलम
जवाब देंहटाएंजब था जहाँ अपना भी गुलशन
इसी वीराने ने थमाई है कलम.......
सुन्दर भावपूर्ण रचना...
पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
जवाब देंहटाएंहिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई....
सुन्दर पंक्तियां हैं। बधाई !
वक्त ने अपना काम किया बखूबी तो मगर
जवाब देंहटाएंगुजरे ज़माने की वही बात , सिरहाने छोड़ गया कोई
बहुत खुबसूरत कविता पढने की मिली , बधाई आपके व्लाग पर देर में आने की गलती की !
वक्त ने अपना काम किया बखूबी तो मगर
जवाब देंहटाएंगुजरे ज़माने की वही बात , सिरहाने छोड़ गया कोई
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यह जीवन की सच्चाई है ...बहुत सुंदर भाव ...शुक्रिया
शारदा जी,
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार नव वर्ष की मंगलकामनाएं!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
जय श्री कृष्ण...आपका लेखन वाकई काबिल-ए-तारीफ हैं....नव वर्ष आपके व आपके परिवार जनों, शुभ चिंतकों तथा मित्रों के जीवन को प्रगति पथ पर सफलता का सौपान करायें ...
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