मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

हिसाब काँटों का चुकाने

छिड़ी जो बात , जख्म छेड़ गया कोई
यादों की हवाओं का रुख मोड़ गया कोई

वक्त ने अपना काम किया बखूबी तो मगर
गुजरे ज़माने की वही बात , सिरहाने छोड़ गया कोई

बिखर के सिमटे तो खुद से भी नजर चुराते ही रहे
बचे-खुचे को फिर पलट कर , उसी मुहाने छोड़ गया कोई

पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
हिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई

मन के पानी पर अक्स मिटते ही नहीं
मार के कंकड़ लहरों का , शोर सुनाने छोड़ गया कोई


मैं जानती हूँ कि ये निराशा है , मगर जब गम तरन्नुम में गाने लगे तो मायूसी कहाँ बची ? यानि गम स्वीकार करते ही हम सहज होने लगते हैं , और हलचल भी तो जीवन का ही लक्षण है ।


तब न थी हाथों में कलम
जब था जहाँ अपना भी गुलशन
इसी वीराने ने थमाई है कलम

जाने हम क्या क्या लिख दें
शान में तेरी ऐ जिन्दगी
तुम लौट के आओ तो सही ...

23 टिप्‍पणियां:

शारदा अरोरा ने कहा…

इमरान जी , इस ओर ध्यान दिलाने का और ग़ज़ल पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया , अब टिप्पणी वाला कॉलम काम करना शुरू हो गया है ..
इमरान जी की टिप्पणी ...
शारदा जी,
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है इस बार आपने.....बहुत ही खूबसूरत....इस पोस्ट के लिए ढेरों शुभकामनायें|
आपकी इस बात से इत्तेफाक रखता हूँ....की गम को स्वीकार कर लेना बहुत बड़ी बात है और उसी से ही गम कम भी होता है|
आपके ब्लॉग पर टिप्पणी का लिंक काम नहीं कर रहा इसलिए मेल भेज रहा हूँ|
Regards
Imran Ansari

रचना दीक्षित ने कहा…

मैं भी बड़ी देर सेर से कोशिश कर रही थी पर अब एक प्रतिक्रिया के साथ टिप्पणी बॉक्स खुला है. बेहतरीन ग़ज़ल और सोच. सच ये ग़म और मुश्किलें ही हमें हर बार और मजबूत इंसान बनाते हैं.

रचना दीक्षित ने कहा…

यहाँ तारीख भी गलत चल रही है

मनोज कुमार ने कहा…

ग़ज़ल दिल को छू गई। बेहद पसंद आई। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आज की कविता का अभिव्‍यंजना कौशल

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बेहतरीन ग़ज़ल...

Dev ने कहा…

laajwaab prastuti ,........bahut khoob

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (16/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

kshama ने कहा…

पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
हिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई
aur
तब न थी हाथों में कलम
जब था जहाँ अपना भी गुलशन
इसी वीराने ने थमाई है कलम
Gazab kee panktiyan hain!

अनुपमा पाठक ने कहा…

इसी वीराने ने थमाई है कलम
वाह!

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
हिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई

बहुत खूबसूरत गज़ल ..

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन ग़ज़ल!

सादर

रंजना ने कहा…

वाह क्या बात कही आपने...

सही है..कहा गया है आह से ही कविता निकलती है...आह न हो तो कविता बने कैसे...

सुन्दर भावपूर्ण रचना...

palash ने कहा…

बहुत संवेदनशील रचना है आपकी ।

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

वक्त ने अपना किया काम बखूबी लेकिन
सिरहाने गुजरे ज़माने जलाने छोड़ गया

पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
कटीली यादें चुभाने सताने छोड़ गया


वाह ! आपकी सोच की पहुंच !! बधाई !!!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

एक अत्यंत सुन्दर ग़ज़ल...
और साथ सुन्दर सन्देश..."गम स्वीकार करते ही हम सहज होने लगते हैं" सादर बधाई

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

आदरणीय शारदा जी,
"पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
हिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई"
मन के भावों को आपने अच्छी अभिव्यक्ति दी है!
और इसका तो जवाब नहीं है -
"जाने हम क्या क्या लिख दें
शान में तेरी ऐ जिन्दगी
तुम लौट के आओ तो सही ... "
आभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

तब न थी हाथों में कलम
जब था जहाँ अपना भी गुलशन
इसी वीराने ने थमाई है कलम.......
सुन्दर भावपूर्ण रचना...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

पीले पन्नों में गुलाबों के बहाने आ कर
हिसाब काँटों का चुकाने , सताने छोड़ गया कोई....
सुन्दर पंक्तियां हैं। बधाई !

Sunil Kumar ने कहा…

वक्त ने अपना काम किया बखूबी तो मगर
गुजरे ज़माने की वही बात , सिरहाने छोड़ गया कोई

बहुत खुबसूरत कविता पढने की मिली , बधाई आपके व्लाग पर देर में आने की गलती की !

केवल राम ने कहा…

वक्त ने अपना काम किया बखूबी तो मगर
गुजरे ज़माने की वही बात , सिरहाने छोड़ गया कोई
xxxxxxxxxxxxxxxxx
यह जीवन की सच्चाई है ...बहुत सुंदर भाव ...शुक्रिया

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

शारदा जी,
आपको सपरिवार नव वर्ष की मंगलकामनाएं!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

#vpsinghrajput ने कहा…

जय श्री कृष्ण...आपका लेखन वाकई काबिल-ए-तारीफ हैं....नव वर्ष आपके व आपके परिवार जनों, शुभ चिंतकों तथा मित्रों के जीवन को प्रगति पथ पर सफलता का सौपान करायें ...