गुरुवार, 1 सितंबर 2011

महिवाल जवाब माँगे



दिल है तो कोई
गुलाब माँगे

धड़कने के बहाने
कोई ख़्वाब माँगे

आग के दरिया से
चुल्लू भर चनाब माँगे

इबारतें लिखने को
ज़ज्बा-ए-जुनूँ बेहिसाब माँगे

वक्त सदियों से
हिसाब माँगे

साहिल पे कच्चा घड़ा है
महिवाल जवाब माँगे

दिल है तो जाने
क्या क्या जनाब माँगे

9 टिप्‍पणियां:

  1. आग के दरिया से
    चुल्लू भर चनाब माँगे

    इबारतें लिखने को
    ज़ज्बा-ए-जुनूँ बेहिसाब माँगे

    वक्त सदियों से
    हिसाब माँगे
    Gazab kee panktiyan hain!

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  2. वाह शारदा जी बहुत ही मनमोहक रचना ……………बहुत पसन्द आई।

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  3. इबारतें लिखने को
    ज़ज्बा-ए-जुनूँ बेहिसाब माँगे


    बहुत खूब ..अच्छी गज़ल

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  4. इबारतें लिखने को
    ज़ज्बा-ए-जुनूँ बेहिसाब माँगे
    वाह,अच्छी है !

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  5. वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  6. सवल ही लाजवाब हैं तो जवाब तो मांगेगें ही ...
    लाजवाब प्रस्तुति

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  7. अच्छी गज़ल| बेहतरीन प्रस्‍तुति|

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं