सोमवार, 14 मई 2012

भरी दुनिया में तन्हा

ये मेरा दिल जो तुमने तोड़ा है   
भरी दुनिया में तन्हा  छोड़ा है    

काँच का कोई खिलौना हूँ मैं शायद   
खेल कर हाथ से जो छोड़ा है   

ढह जाती है लकड़ी दीमक लगी  
इश्क ने ऐसा घुना मरोड़ा है   

साथी भी मिले साथ भी मिले  
किस्मत को जो मन्जूर थोड़ा है   

ढल तो जाते हैं चाहतों के समन्दर  
ये तुमने हमें कहाँ लाके छोड़ा  है  

शिकायत तो नहीं गुले-गुलशन से  
वीरानी-ए-सहरा ने हमें तोड़ा है   
 
खता कोई तो होगी अपनी भी  
मेहरबानियों ने क्यूँ मुँह मोड़ा है 

ये वादियाँ तो बड़ी  सुहानी थीं   
ये कैसे मोड़ ने तोड़ा -मरोड़ा है  

8 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

apki ye pyari kavita padhi to apko vote kar diya parikalpana par.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

काँच का कोई खिलौना हूँ मैं शायद
खेल कर हाथ से जो छोड़ा है

बहुत सुंदर ग़ज़ल।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

सुंदर और अर्थपूर्ण..सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

devendra gautam ने कहा…

...भावपूर्ण ग़ज़ल...बहुत खूब

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर ग़ज़ल....

vandana gupta ने कहा…

बहुत खूबसूरत गज़ल

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

खता कोई तो होगी अपनी भी
मेहरबानियों ने क्यूँ मुँह मोड़ा है

बहुत सुंदर....
वाह..

अनु

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत सुंदर गज़ल ....