गुरुवार, 3 जनवरी 2013

नया साल आया तो खड़ा है

नया साल आया तो खड़ा है 
उम्मीद जश्न की करता हमसे 
खुशियों पे अपनी पानी पड़ा है  

गुजरे साल में ज़ख़्मी हुए हम 
जार जार रोई मानवता 
काँधे पे अपने , लिए ज़मीर की , लाश खड़ा है 

सूख गये विष्वास के मानी 
मर गया आँख में शर्म का  पानी 
अस्मिता बचाओ , घर में लुटेरा आन खड़ा है 

जननी , भगिनी , भामिनी 
नारी के सम्मान की भाषा 
हाथ में लिए मशाल ' दामिनी ' , हर रिश्ते का पहरेदार खड़ा है 

हर आँख नम है 
हर सीने में कितना गम है 
कैसे करें सत्कार तुम्हारा , गुजरा साल सीने में अड़ा है 


नया साल आया तो खड़ा है 
उम्मीद जश्न की करता हमसे 
खुशियों पे अपनी पानी पड़ा है  



12 टिप्‍पणियां:

  1. हर आँख नम है
    हर सीने में कितना गम है
    भावुक करती रचना सुन्दर प्रस्तुति
    नयी उम्मीदों के साथ नववर्ष की शुभकामनाएँ !!!!!

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  2. वाह .बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल
    सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
    नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामना.

    मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.



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  3. गुजरे साल में ज़ख़्मी हुए हम
    जार जार रोई मानवता
    काँधे पे अपने,
    लिए ज़मीर की लाश,
    खड़ा है
    नया साल

    isteqbaal...

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  4. बिलकुल सही बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की #

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  5. नयी साल से पहली उम्मीद यही है की उन दरिंदो को सू-ऐ-दार की तरफ जाते देखे. सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  6. हर आँख नम है
    हर सीने में कितना गम है
    कैसे करें सत्कार तुम्हारा , गुजरा साल सीने में अड़ा है
    aah! Pata nahi kitna kuchh seene me ada hai! behad sundar likha hai aapne...

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  7. बीते साल में जो कुछ घटा उससे अवश्य ही ऑंखें अब तक नम हैं,आप ने इस दर्द को कविता में बखूबी अभिव्यक्त किया है.

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं