रविवार, 13 जनवरी 2013

हादसे ही ले आये हैं

हादसों की न पूछो 
बचा न कुछ भी , जिस्मों-जाँ पूछो 

वक़्त हुआ है 
किस पे मेहरबाँ पूछो 

टूट गया दिल 
ढह गया मकाँ पूछो 

महकते थे गुल 
बचे हैं क्या निशाँ पूछो 

हादसे ही ले आये हैं 
इस मुकाँ पूछो 

मिट-मिट के हुआ है 
गम जवाँ पूछो 

जज़्बात हैं स्याही के सिवा 
लेखनी की जुबाँ पूछो 

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है

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  2. वाह!!!बेहतरीन भाव संयोजन शारदा जी बहुत खूब....

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  3. ...लाज़वाब! बहुत सटीक और अद्भुत अभिव्यक्ति..शारदा जी
    मुस्कुराहट पर ...ऐसी खुशी नहीं चाहता

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  4. टूट गया दिल
    ढह गया मकाँ पूछो ...

    हालात को कहने का आपका अपना अंदाज बेहद लाजवाब है ...
    बहुत खूब ...

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  5. आपकी टिप्णियों से निसंदेह हौसला बढ़ता है ..

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  6. जज़्बात हैं स्याही के सिवा
    लेखनी की जुबाँ पूछो

    बहुत खूब ,,,
    सटीक लेखन ,,,,

    सादर .

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  7. हादसों की न पूछो
    बचा न कुछ भी , जिस्मों-जाँ पूछो ..

    वाकई ..बहुत सुंदर रचना !

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं