शनिवार, 22 मार्च 2014

सब्र का प्याला

 दर्द के घूँट और सब्र का प्याला 
साकी ने मेरा इम्तिहान ले डाला 

अपने हाथों से जो देता है रहमत 
उन्हीं हाथों से कहर दे डाला 

यकीन अब भी है , तेरे इम्तिहाँ ने 
इक नया मुकाम दे डाला 

दूर से माप रहा तू हौसला मेरा 
लो, मैंने भी तुझे पढ़ डाला 

इम्तिहाँ हैं तालीम का हिस्सा 
वक्त ने फैसला सुना डाला 

कभी तेरी ये सदा , कभी तेरी ये दवा 
पीना हमको है , शिकन न डाला 

साथी भी है , समाँ भी , सामाँ भी 
रूठी किस्मत की नजर कर डाला 

3 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत खूब -सुंदर गजल ...!
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Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात है। लाजवाब प्रस्तुति। सुंदर अहसास.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति. धन्यवाद!!