रविवार, 29 मार्च 2015

हम सब हैं किताब

हम सब हैं किताब , पढ़ने वाला न मिला 
या खुदा ऐसा भी कोई ,चाहने वाला न मिला 

हाथ में हाथ लिये चलते रहे हम यूँ ही 
दूर तक कोई भी साथ निभाने वाला न मिला 

चलती रहती है सारी दुनिया यूँ तो दिल से 
फिर भी कोई पलकों पे बिठाने वाला न मिला 

गुनगुनाने के लिये चाहिये कोई तो फिजाँ 
वफ़ा के गीत कोई भी सुनाने वाला न मिला 

चाहिये ज़िन्दगी को कोई न कोई तो वजह 
बहाना कोई भी हमको चलाने वाला न मिला 

8 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

चाहिये ज़िन्दगी को कोई न कोई तो वजह
बहाना कोई भी हमको चलाने वाला न मिला
...सच जीने की कोई न कोई वजह होनी ही चाहिए ...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (31-03-2015) को "क्या औचित्य है ऐसे सम्मानों का ?" {चर्चा अंक-1934} पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Malhotra vimmi ने कहा…

चाहिये ज़िन्दगी को कोई न कोई तो वजह
बहाना कोई भी हमको चलाने वाला न मिला

बहुत खूबसूरत।
बधाई।

Kailash Sharma ने कहा…

चाहिये ज़िन्दगी को कोई न कोई तो वजह
बहाना कोई भी हमको चलाने वाला न मिला
...सच कहा है की ज़िंदगी को जीने के लिए कुछ वज़ह तो चाहिए...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

बेनामी ने कहा…

.बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...शानदार।
.बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

बेनामी ने कहा…

.बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...शानदार।
.बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

बेनामी ने कहा…

.बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...शानदार।
.बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

V Vivek ने कहा…

Bahut khubsurat ghazal aapne likhi hai. Kabhi is naachiz ke blog pe aaya kare.
http://www.vivekv.me/?m=1