मंगलवार, 21 सितंबर 2010

क्या-क्या पास हमारे निकले


कोई शुबहा कहीं नहीं है
रात हुई और तारे निकले

अरमाँ की गलियों में यूँ ही
हम अपना दिल हारे निकले

कोई मंजिल कहीं नहीं है
टूट के बिखरे सितारे निकले

बाँध सके जो हमको देखो
झूठे सारे सहारे निकले

अपनी चादर में फूलों के
काँटों से ही धारे निकले

डूबें कैसे बीच भँवर में
दूर बहुत ही किनारे निकले

उँगली पकड़ेंगे वो अपनी
ऐतबार के मारे निकले

पराई धड़कन , पराई साँसें
क्या-क्या पास हमारे निकले

21 टिप्‍पणियां:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बाँध सके जो हमको देखो
झूठे सारे सहारे निकले....

यह पंक्ति तो दिल को छू गई... वाकई में जिसे हम सहारा समझते हैं ...जो हमें ज़रूरत पर बाँध सके...समेट सके... वही आख़िर में झूठे निकलते हैं...

बहुत ही सुंदर...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अपनी चादर में फूलों के
काँटों से ही धारे निकले

बहुत बढ़िया गज़ल ...सच को कहती हुई ..

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

अरमाँ की गलियों में यूँ ही
हम अपना दिल हारे निकले
वाह
बाँध सके जो हमको देखो
झूठे सारे सहारे निकले...
शारदा जी, कमाल के शेर हैं...बधाई.

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

पराई धड़कन , पराई साँसेँ। क्या-क्या पास हमारे निकले ।। बहुत ही बहतरीन प्रस्तुति। हर शेर अपने आप मेँ मुकम्मल हैँ। दिल को छू जाने वाली एक लाजबाव गजल। आभार! -: VISIT MY BLOG :- ऐ-चाँद बता तू , तेरा हाल क्या हैँ।............ कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

अपनी चादर में फूलों के
काँटों से ही धारे निकले

वाह...बेहतरीन गज़ल..

नीरज

रचना दीक्षित ने कहा…

"पराई धड़कन , पराई साँसें
क्या-क्या पास हमारे निकले"
ये तो अच्छी बात नहीं है.इन परायी चीजों को अपना बना डालिए. बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल.दिल में उतरी और दिल में ही कहीं खो गयी......

Unknown ने कहा…

सुन्दर काव्य रचना ...........अभिनव पोस्ट !

उम्मतें ने कहा…

गहन अविश्वास और शिकस्त के ख्याल के इर्द गिर्द घूमती ! फिर भी कहूंगा एक बेहतर कविता !

मनोज कुमार ने कहा…

बेहतरीन! लाजवाब!!बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

पोस्टर!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!

Udan Tashtari ने कहा…

वाह! बहुत खूब!!

रानीविशाल ने कहा…

पराई धड़कन , पराई साँसें
क्या-क्या पास हमारे निकले
बेहतरीन ग़ज़ल ...हर शेर बहुत सुन्दर है

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-९) मूल्य सिद्धांत, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

अमिताभ मीत ने कहा…

अपनी चादर में फूलों के
काँटों से ही धारे निकले

पराई धड़कन , पराई साँसें
क्या-क्या पास हमारे निकले

क्या बात है !!

भारतीय की कलम से.... ने कहा…

कोई मंजिल कहीं नहीं है
टूट के बिखरे सितारे निकले

बाँध सके जो हमको देखो
झूठे सारे सहारे निकले

इन पंक्तियों को पढ़कर लगा की जैसे आपने हमारे दिल की बात कह दी हो ......
शानदार लेखन के लिए बधाई स्वीकार करें |

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

बाँध सके जो हमको देखो
झूठे सारे सहारे निकले

Sunder Prastuti!

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

बाँध सके जो हमको देखो
झूठे सारे सहारे निकले

क्या बात है शारदा जी !
ख़ूबसूरत ग़ज़ल!
मुबारक हो

Coral ने कहा…

डूबें कैसे बीच भँवर में
दूर बहुत ही किनारे निकले

बहुत खूबसूरत

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

अरमाँ की गलियों में यूँ ही
हम अपना दिल हारे निकले

कोई मंजिल कहीं नहीं है
टूट के बिखरे सितारे निकले

बहुत ही खूबसूरत रचना .....बधाई ..

भारतीय की कलम से.... ने कहा…

प्रणाम !!
मेरे नवोदित ब्लॉग में प्रवेश कर आपने मुझे आशीर्वाद दिया उसके लिए सादर आभार, मै गौरव शर्मा "भारतीय" न कवी हूँ न ही लेखक, भावों को शब्दों में पिरोने की कला से भी मै अंजान हूँ, मै भारत देश के अंतिम पंक्ति का एक साधारण "भारतीय" हूँ और यहाँ आप आत्मीय जनों तक अपने विचारों को पहुँचाने तथा आप के विचारों को जानने के लिए उपस्थित हूँ |
आशा ही नहीं वरन विश्वास है की मुझे आप का स्नेह, मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होगा और यह ब्लॉग सार्थक होगा

RAJWANT RAJ ने कहा…

bhut hi drdili mgr khoobsurat gzal ke liye shukriya .

बेनामी ने कहा…

शारदा जी,

मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ की आपने मेरे ब्लॉग को अपनी अहमतरीन राय से नवाज़ा | जैसा की आपने कहा की टिप्पणी जो दिल से दी गयी हो वही बढ़िया होती है ....चाहे एक हो.........जहाँ तक फॉलो करने की बात आती है .......मेरी इल्तिजा हमेशा लोगों से यही रही है .........अगर.....(खास जोर है) ...अगर आपको ब्लॉग पसंद आया हो तो हौसलाफजाई करें......मैं किसी पर अपने ब्लॉग या अपनी सोच को थोपना नहीं चाहता......मैं फिर कहता हूँ की अगर आपको दिल से ब्लॉग या मेरी कोशिश जो उन महान लोगों के महान कार्यो के सामने कुछ भी नहीं है जिन लोगों को मेरे ब्लॉग समर्पित हैं .......दिल से पसंद आया हो तो आप उसे ज़रूर फॉलो करें ....सिर्फ इसलिए नहीं की मैंने आपसे गुज़ारिश की या मैं यहाँ नया हूँ ....हर पुरानी चीज़ कभी न कभी नयी ही होती है.....शुक्रिया|

आप मुझसे ज्यादा तजुर्बेकार हैं और उम्र में मुझसे बड़ी हैं ....इसलिए अगर कोई गुस्ताखी हो गयी हो तो माफ़ कीजियेगा|