सोमवार, 12 सितंबर 2011

थोड़ी मेहरबानी रख लूँ

जितनी जीने के लिये ज़रूरी हो
थोड़ी बदगुमानी रख लूँ

बड़ी धूप है ऐ दोस्त
थोड़ी मेहरबानी रख लूँ

भरम सारे मुकर गये देखो
चलने को जिन्दगानी रख लूँ

तमाम उम्र साथी ही तके
हादसे धोने को थोड़ा पानी रख लूँ

नूर के शामियाने कहाँ गये
वही चेहरे यादों की निगहबानी रख लूँ

14 टिप्‍पणियां:

  1. तमाम उम्र साथी ही तके
    हादसे धोने को थोड़ा पानी रख लूँ wah bahut khoob ....
    कभी समय मिले तो आयेगा मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  2. जितनी जीने के लिये ज़रूरी हो
    थोड़ी बदगुमानी रख लूँ

    बड़ी धूप है ऐ दोस्त
    थोड़ी मेहरबानी रख लूँ

    wah gazab ki bhaavavyakti.

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  3. जितनी जीने के लिये ज़रूरी हो
    थोड़ी बदगुमानी रख लूँ

    बड़ी धूप है ऐ दोस्त
    थोड़ी मेहरबानी रख लूँ.

    खूबसूरत शेर और बहुत सुंदर नज़्म. बधाई हो इस लाजवाब भावाभिव्यक्ति के लिए.

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  5. तमाम उम्र साथी ही तके
    हादसे धोने को थोड़ा पानी रख लूँ ..

    वाह ... बहुत खूबसूरत और अलग हट के कहा गया शेर ... लाजवाब है ...

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  6. नूर के शामियाने कहाँ गये
    वही चेहरे यादों की निगहबानी रख लूँ


    नए अंदाज़ की बेहतरीन ग़ज़ल .तमाम अश- आर ...संवाद करते से खुद से ...
    नूर के शामियाने कहाँ गये
    वही चेहरे यादों की निगहबानी रख लूँ ..http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/09/blog-post_13.हटमल
    अफवाह फैलाना नहीं है वकील का काम .

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  7. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ......

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  8. भरम सारे मुकर गये देखो
    चलने को जिन्दगानी रख लूँ

    Behtren Gazal...

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  9. वाह. शारदा जी.
    बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति.

    "जितनी जीने के लिये ज़रूरी हो/थोड़ी बदगुमानी रख लूँ"
    बहुत बढ़िया..

    "तमाम उम्र साथी ही तके/हादसे धोने को थोड़ा पानी रख लूँ"
    एकदम नया ख्याल.

    "नूर के शामियाने कहाँ गये/वही चेहरे यादों की निगहबानी रख लूँ"
    लाजवाब.

    बहुत बहुत बधाई.

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  10. भरम सारे मुकर गये देखो
    चलने को जिन्दगानी रख लूँ

    वाह !!! सुंदर पंक्तियाँ.

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं