सोमवार, 25 मार्च 2013

ऐसी तलब

तुम हो न सके मेरे 
दुनिया की ख्वाहिशों से मेरा काम क्या 
दिल से दिल को जो मिलाये 
ऐसी तलब का है भला दाम क्या 

हम तो डूबे हैं वहीँ पर 
उथले किनारों पर भला वफ़ा का काम क्या 
चलें तो चलें कैसे 
वो मेंहदी , वो महावर का भला सा नाम क्या 

वक़्त की कोई चाल सूरज के साथ मिली 
भरी दुपहरी में और घाम क्या 
चाहने किस को चले हैं 
इश्क की नगरी में किसी को आराम क्या 

अश्कों से लिखी दास्तान , परवाह किसे है 
इस अहले-सफ़र का हो अन्जाम क्या 

18 टिप्‍पणियां:

  1. खुशियाँ मनाओ ,ख़ुशी की घड़ी है
    ऐसी दास्तान के लिए जिन्दगी पड़ी है ......
    परिवार सहित होली मुबारक हो !
    स्वस्थ रहें!

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 26/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है ,होली की हार्दिक बधाई स्वीकार करें|

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    रंगों के पर्व होली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामंनाएँ!

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  4. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,,शारदा जी,
    होली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाए....

    Recent post : होली में.

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  5. .बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें होली की शुभकामनायें तभी जब होली ऐसे मनाएं .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  6. अबेहतरीन अभिव्यक्ति शारदा जी।।।



    होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!

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  7. आप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं...
    आप की ये रचना 29-03-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचलपर लिंक की जा रही है। आप भी इस हलचल में अवश्य शामिल होना।
    सूचनार्थ।

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  8. अश्कों से लिखी दास्तान , परवाह किसे है
    इस अहले-सफ़र का हो अन्जाम क्या

    वाह क्या खूब लिखा है बधाई !
    होली मंगलमय हो ...

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  9. भावनात्मक प्रस्तुति ... होली की हार्दिक शुभकामनायें...

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  10. बहुत भावमयी प्रस्तुति...होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  11. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति । आपको और आपके पूरे परिवार को रंगों के त्योहार होली की शुभ कामनाएँ

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  12. दिल से दिल को जो मिलाये
    ऐसी तलब का है भला दाम क्या

    ऐसी तलब तो अमूल्य होती है, बेहतरीन प्रस्तुति

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  13. चाहने किस को चले हैं
    इश्क की नगरी में किसी को आराम क्या ...

    सच कहा है ... किसी को आराम नहीं निलता इस रस्ते पे ... इस नगरी में ...

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  14. very nice....
    वक़्त की कोई चाल सूरज के साथ मिली
    भरी दुपहरी में और घाम क्या

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं