गुरुवार, 27 जून 2013

दिलरुबाई ही लगे

 हम वहाँ हैं जहाँ ,
अपनी खबर भी पराई ही लगे 

चिकने घड़े सा कर दिया 
ज़िन्दगी ये भी रुसवाई ही लगे 

न जाते इधर तो किधर जाते 
हर शय शौदाई ही लगे 

आईना किस को दिखाऊँ 
अपनी फितरत भी हरजाई ही लगे 

यही बदा है , यही सही 
रात के पैर में बिवाई ही लगे 

तेरा मुँह देख के जीते हैं 
आग अपनी लगाई ही लगे 

इश्क में दर-बदर हर कोई 
दाँव पर सारी खुदाई ही लगे 

शोला हो , शबनम हो 
ऐ वक्त , दिलरुबाई ही लगे 

6 टिप्‍पणियां:

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

बहुत उम्दा

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया,सुंदर प्रस्तुति,,,

Recent post: एक हमसफर चाहिए.

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन हर बार सेना के योगदान पर ही सवाल क्यों - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

यही बदा है , यही सही
रात के पैर में बिवाई ही लगे ..

बहुत खूब ... अलग अंदाज़ का शेर ... किस्मत में जो है वो ही सही ...
क्या बात है ...

अशोक सलूजा ने कहा…

तेरा मुँह देख के जीते हैं
आग अपनी लगाई ही लगे

बहुत खूब ! मुबारक कबूलें!

Madan Mohan Saxena ने कहा…

वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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